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Showing posts from July, 2019

यहां हुआ था हनुमान जी का जन्म ! यही है वो गुफा जहाँ शिव के रुद्रावतार हनुमान जी ने लिया था जन्म !

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हनुमान जी का जन्म – हमारे देश में पवनपुत्र  हनुमान जी के भक्तों की कोई कमी नहीं है. उनके भक्त हर मंगलवार और शनिवार को अपने इस आराध्य की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. हनुमान चालीसा और बजरंग बाण से हनुमान जी की स्तुति करते हैं और अपने सभी कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं. हनुमान जी भगवान शिव के रुद्रअवतार हैं. हनुमान जी की माता का नाम अंजनी है इसलिए उन्हें आंजनेय भी कहा जाता है. जबकि उनके पिता का नाम केसरी है इसलिए उन्हें केसरी नंदन भी कहा जाता है. अगर आप भी हनुमान जी के भक्त हैं तो क्या आप जानते कि आपके इस आराध्य देव का जन्म कहां हुआ था. अगर आपको ये नहीं पता है तो चलिए हम आपको बताते हैं कि हनुमान जी का जन्म भारत के किस क्षेत्र में हुआ था. मान्यता के अनुसार शिव के रुद्रावतार हनुमान जी का जन्म भारत की पावन भूमि पर ही हुआ था लेकिन भारत में कई ऐसे स्थान है जहां कई जानकारी हनुमान जी के जन्म लेने का दावा करते हैं. 1- गुमला जिला, झारखंड कुछ विद्वानों का मानना है कि हनुमान जी का जन्म झारखंड राज्य के गुमला जिला मुख्यालय से 21 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ थ...

एक राक्षसी को अप्सरा बनाया था.! श्रीराम ने

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हिन्दू धर्म के दो सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली दो धार्मिक किताब रामायण और महाभारत में सनातन धर्म की ऐसी कई कथाएँ दर्ज की हुई हैं, जो बड़ी दिलचस्प हैं. त्रेता युग में हुई रामायण काल की सम्पूर्ण घटना श्रीराम और उनके चरित्र से जुड़े कई पहलुओं पर लिखी गयी थी. कहा जाता हैं कि श्रीराम भगवान् विष्णु के अवतार थे और उन्होंने ने कई राक्षसों और दैत्यों का उद्धार किया था. ऐसा ही किस्सा एक बार एक राक्षसी के साथ भी हुआ जिसका नाम ताड़का था. त्रेता युग में राक्षसों का बहुत आतंक था. Alok Mishra उस समय ऋषि मुनियों द्वारा संपन्न किये जाने वाले यज्ञ में हमेशा व्यवधान डाल कर उनका यज्ञ कभी पूरा नहीं होने देते थे. राक्षस उनके यज्ञ कुंड में कभी मांस के टुकड़े डाल देते थे या फिर कभी उसमे रक्त फेक देते थे. जब राक्षसों का आतंक बहुत बढ़ गया तो सभी ऋषि मुनि एकत्रित हो कर उस समय के वरिष्ट ऋषि विश्वामित्र के समक्ष अपनी समस्या लेकर पहुचे. उस समय ऋषि विश्वामित्र अयोध्या के प्रमुख ‘राजा दशरथ’ के पुत्र राम और लक्ष्मण को आयुध शिक्षा दे रहे थे. जब सभी ऋषि वहां पहुचे और अपनी व्यथा सुनाई तो उन ऋषियों की बात सुन ...

प्रभु श्रीराम के पुत्र लव ने बसाया था लाहौर! प्राचीन ग्रंथों में लहौर शहर का लवपुर नाम से उल्लेख मिलता है

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ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लवपुरी नगर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। लाहौर  पुराने  पंजाब  की राजधानी है जो रावी नदी के दाहिने तट पर बसा हुआ है। प्राचीन ग्रंथों में लहौर शहर का  लवपुर  नाम से उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि यह लवपुर भगवान श्रीरामचंद्र के पुत्र लव (लोह) ने बसाया था। लाहौर के किले में आज भी प्रभु श्रीराम के पुत्र लव का एक मंदिर विराजमान है। हालांकि मंदिर में पूजा प्रार्थना पर प्रतिबंध लगा हुआ है। जब भारत आजाद हुआ था तब यहां लगभग 36 प्रतिशत आबादी हिन्दू और सिखों की हुआ करती थी। हालांकि इतिहासकार मानते हैं कि लाहौर को संभवतः ईसवी सन् की शुरुआत में बसाया गया होगा। ईसा की सातवीं शताब्दी में शहर इतना महत्त्वपूर्ण था कि उसका उल्लेख चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी किया है। शत्रुंजय के एक अभिलेख में लवपुर या लाहौर को  लामपुर  भ...

कुछ महापुरुषों की जन्म तिथियों के आधार पर जानते हैं कि कितना पुराना है हिन्दू धर्म? जानेंगे तो रह जाएंगे हैरान

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कोई लाखों वर्ष, तो कोई हजारों वर्ष पुराना मानता है हिन्दू धर्म को। लेकिन क्या यह सच है? आओ हम कुछ महापुरुषों की जन्म तिथियों के आधार पर जानते हैं कि कितना पुराना है हिन्दू धर्म? हिन्दू धर्म की पुन: शुरुआत वराह कल्प से होती है। इससे पहले पद्म कल्प, ब्रह्म कल्प, हिरण्य गर्भ कल्प और महत कल्प बीत चुके हैं सम्राट विक्रमादित्य : 2,100 साल पहले हिन्दू धर्म विक्रमादित्य के पिता गंधर्वसेन और बड़े भाई भर्तृहरि थे। कलिकाल के 3,000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उनके काल में हिन्दू धर्म ने महान ऊंचाइयों को प्राप्त किया था। वे एक ऐतिहासिक पुरुष थे। आचार्य चाणक्य : 2,300 साल पहले हिन्दू धर्म चाणक्य का जन्म ईस्वी पूर्व 371 में हुआ था जबकि उनकी मृत्यु ईस्वी पूर्व 283 में हुई थी। चाणक्य का उल्लेख मुद्राराक्षस, बृहत्कथाकोश, वायुपुराण, मत्स्यपुराण, विष्णुपुराण, बौद्ध ग्रंथ महावंश, जैन पुराण आदि में मिलता है। चाणक्य के समय ही भारत पर सिकंदर का आक्रमण हुआ था। भगवान महावीर स्वामी : 2,650 वर्ष पहले हिन्दू धर्म जैन धर्म के पुनर्संस्थापक महावीर स्वाम...

मुस्लिम आक्रांताओं ने इन 10 हिन्दू मंदिरों को तोड़ा था !

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भारत में 7वीं सदी के प्रारंभ में मुस्लिम आक्रांताओं का आक्रमण प्रारंभ हुआ था। यहां उन्होंने सोना-चांदी आदि दौलत लूटने और इस्लामिक शासन की स्थापना करने के उद्देश्य से आक्रमण किए। 7वीं से लेकर 16वीं सदी तक लगातार हजारों हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को तोड़ा और लूटा गया। उनमें से कुछ ऐसे थे, जो कि विशालतम होने के साथ ही भारतीय अस्मिता, पहचान और सम्मान से जुड़े थे। ऐसे भी कई मंदिरों को हमने इस लिस्ट में शामिल नहीं किया है। फिर भी चुनिंदा मंदिरों के इतिहास के बारे में आपके लिए यहां जानकारी जुटाई गई है मार्तण्ड सूर्य मंदिर, अनंतनाग, कश्मीर कश्मीर घाटी में लगभग 8वीं शताब्दी में बने ऐतिहासिक और विशालकाय मार्तण्ड सूर्य मंदिर को मुस्लिम शासक सिकंदर बुतशिकन (Sikandar Butshikan) ने तुड़वाया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इस मंदिर को कर्कोटा समुदाय के राजा ललितादित्य मुक्तिपाडा ने 725-61 ईस्वी के दौरान बनवाया था। # यह कश्मीर के पुराने मंदिरों में शुमार होता है और श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग जिले में है। यह मंदिर अनंतनाग से पहलगाम के बीच मार्तण्ड...

भगवान शिव के 35 रहस्य , भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं !

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भगवान शिव  अर्थात पार्वती के पति  शंकर  जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है, उनके बारे में यहां प्रस्तुत हैं 35 रहस्य 1. आदिनाथ शिव सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है। 2. शिव के अस्त्र-शस्त्र शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था। 3. शिव का नाग शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है। 4. शिव की अर्द्धांगिनी शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं। 5. शिव के पुत्र शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है। 6. शिव के शिष्य शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर...

अश्‍वत्थामा के 10 रहस्य...जानिए अश्वत्थामा ने एक ही रात में कर दिया था पांडव सेना का संहार

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अश्वत्थामा :  महाभारत में योद्धा तो एक से बड़कर एक थे लेकिन अश्वत्थामा का कोई तोड़ नहीं था। यदि दुर्योधन द्रोण या कर्ण की जगह अश्‍वत्थामा को सेनापति बना देता तो आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता या फिर स्वयं कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर उसे मारना होता। अश्‍वत्थामा सभी तरह के  अस्त्र और शस्त्र  में पारंगत था। उसे कोई मार भी नहीं सकता था, क्योंकि वह स्ययं रुद्रांश था। महाभारत  युद्ध  के बाद जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक अश्‍वत्थामा भी थे। अश्‍वत्थामा को श्रीकृष्ण ने 3 हजार वर्षों तक जीवित रहकर दुखभोगते रहने का शाप दिया था। कहते हैं कि वह आज भी जीवित है। लेकिन 3 हजार वर्ष तो पूर्ण हो गए हैं।   अश्‍वत्थामा जीवन के संघर्ष की आग में तपकर सोना बना था। महान पिता द्रोणाचार्य से उन्होंने धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था। द्रोण ने अश्‍वत्थामा को धनुर्वेद के सारे रहस्य बता दिए थे। सारे दिव्यास्त्र, आग्नेय, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर आदि सभी उसने सिद्ध कर लिए थे। वह भी द्रोण, भीष्म, परशुराम की कोटि ...

महाबली राजा बालि के 10 रहस्य, जानिए... जब इंद्र ने बाली को मार दिया तब कैसे जिंदा होकर शक्तिशाली बना बालि?

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महान राजा बालि :  राजा बलि (लगभग 9078 ईसा पूर्व)। असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। भारतीय और हिन्दू इतिहास में राजा बलि की कहानी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके बाद एक नए युग की शुरुआत हुई थी। हालांकि राजा बलि फिर भी महान और शक्तिमान है और आज भी वह महान और शक्तिमान बनकर घूम रहा है। दरअसल, वृत्र (प्रथम मेघ) के वंशज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद था और प्रहलाद का पुत्र विरोचन था और विरोचन का पुत्र बाली था। मोटे तौर पर वृत्र या मेघ ऋषि के वंशजों को मेघवंशी कहा जाता है। राजा बलि की सहायता से ही देवराज इन्द्र ने समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन से प्राप्त जब अमृत पीकर देवता अमर हो गए, तब फिर से देवासुर संग्राम छिड़ा और इन्द्र द्वारा वज्राहत होने पर बलि की मृत्यु हो गई। ऐसे में तुरंत ही शुक्राचार्य के मंत्रबल से वह पुन: जीवित हो गया। ले...

देवराज इन्द्र के जीवन का रहस्य, जानिए

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देवराज इंद्र :  प्राचीन काल में देव और असुर नाम से जो जाति समूह होते थे। हम जिस इन्द्र की बात कर रहे हैं वह अदिति पुत्र और शचि के पति देवराज पुरंदर हैं। उनसे पहले पांच इन्द्र और हो चुके हैं। इन इन्द्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर भी कहा जाता है। क्रमश: 14 इन्द्र हो चुके हैं:- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। इंद्र देवताओं के राजा थे। इंद्र के पास कई तरह के अस्थ और शस्त्र थे, लेकिन उनमें से सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र था। इन्द्र मेघ और बिजली के माध्यम से अपने शत्रुओं पर प्रहार करने की क्षमता रखते थे। वैदिक काल में युद्ध-विद्या अत्यंत विकसित थी। सैनिकगण घोड़े की सवारी करते थे और धनुष-बाण उन दिनों के सर्वाधिक प्रचलित अस्त्र थे। इन्द्र नाम से वेदों में कई युद्धों और कार्यों का वर्णन मिलता है। इन्द्र तत्कालीन आर्य सभ्यता की रक्षा करने वाला एक महत्वपूर्ण नेतृत्व था। शायद यही का रण  है कि विजयादशमी के पावन पर्व पर भगवान राम के साथ ही हम इन्द्र का भी स्मरण करते हैं। ...