देवराज इन्द्र के जीवन का रहस्य, जानिए
देवराज इंद्र : प्राचीन काल में देव और असुर नाम से जो जाति समूह होते थे। हम जिस इन्द्र की बात कर रहे हैं वह अदिति पुत्र और शचि के पति देवराज पुरंदर हैं। उनसे पहले पांच इन्द्र और हो चुके हैं। इन इन्द्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर भी कहा जाता है। क्रमश: 14 इन्द्र हो चुके हैं:- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। इंद्र देवताओं के राजा थे।
इंद्र के पास कई तरह के अस्थ और शस्त्र थे, लेकिन उनमें से सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र था। इन्द्र मेघ और बिजली के माध्यम से अपने शत्रुओं पर प्रहार करने की क्षमता रखते थे। वैदिक काल में युद्ध-विद्या अत्यंत विकसित थी। सैनिकगण घोड़े की सवारी करते थे और धनुष-बाण उन दिनों के सर्वाधिक प्रचलित अस्त्र थे। इन्द्र नाम से वेदों में कई युद्धों और कार्यों का वर्णन मिलता है। इन्द्र तत्कालीन आर्य सभ्यता की रक्षा करने वाला एक महत्वपूर्ण नेतृत्व था। शायद यही कारण है कि विजयादशमी के पावन पर्व पर भगवान राम के साथ ही हम इन्द्र का भी स्मरण करते हैं।
इंद्र के कार्य : इन्द्र ने कई युद्धों का संचालन किया। वृत्रासुर को मारने और दशराज्ञ के युद्ध में भरतों को जीताने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंद्र ने भगवान ब्रह्मा से आत्मज्ञान की शिक्षा लेकर खुद को शक्तिशाली और अजर अमर बना लिया था। इंद्र के साथ उस वक्त विरोचन ने भी शिक्षा ली थी। दोनों की शिक्षा का असर अलग अलग हुआ। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें.. कैसे इंद्र और विरोचन के कारण दो तरह की विचारधारा अस्तित्व में आई...
ऋग्वेद के दसवें मंडल के सत्ताईसवें सूक्त में इन्द्र ने अपने बल तथा पराक्रम का स्वयं वर्णन किया है। उस सूक्त में उन्होंने कहा है कि वह केवल यज्ञकर्म-शून्य व्यक्तियों का ही विनाश करते हैं। कोई भी यह नहीं कह सकता कि उन्होंने कभी किसी सात्विक पुरुष का वध किया है।
स्वयं इन्द्र के ही शब्दों में- ''मेरी वीरता की सभी प्रशंसा करते हैं और ऋषिगणों तक ने मेरी स्तुति की है। युद्ध में कोई मुझे निरुद्ध नहीं कर सकता, पर्वतों में भी इतनी शक्ति नहीं कि वह मेरा रास्ता अवरुद्ध करने में सफल हो सकें। जब मैं शब्द करता हूं तो बहरे लोग भी कांपना शुरू कर देते हैं। जो लोग मुझे नहीं मानते और मेरे लिए अर्पित सोमरस का पान करने की घृष्ठता करते हैं उनको अपने वज्र से मैं मृत्यु के घाट उतार देता हूं।''
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