अश्‍वत्थामा के 10 रहस्य...जानिए अश्वत्थामा ने एक ही रात में कर दिया था पांडव सेना का संहार


अश्वत्थामा : महाभारत में योद्धा तो एक से बड़कर एक थे लेकिन अश्वत्थामा का कोई तोड़ नहीं था। यदि दुर्योधन द्रोण या कर्ण की जगह अश्‍वत्थामा को सेनापति बना देता तो आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता या फिर स्वयं कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर उसे मारना होता।



अश्‍वत्थामा सभी तरह के में पारंगत था। उसे कोई मार भी नहीं सकता था, क्योंकि वह स्ययं रुद्रांश था। महाभारत के बाद जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक अश्‍वत्थामा भी थे। अश्‍वत्थामा को श्रीकृष्ण ने 3 हजार वर्षों तक जीवित रहकर दुखभोगते रहने का शाप दिया था। कहते हैं कि वह आज भी जीवित है। लेकिन 3 हजार वर्ष तो पूर्ण हो गए हैं।
 
अश्‍वत्थामा जीवन के संघर्ष की आग में तपकर सोना बना था। महान पिता द्रोणाचार्य से उन्होंने धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था। द्रोण ने अश्‍वत्थामा को धनुर्वेद के सारे रहस्य बता दिए थे। सारे दिव्यास्त्र, आग्नेय, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर आदि सभी उसने सिद्ध कर लिए थे। वह भी द्रोण, भीष्म, परशुराम की कोटि का धनुर्धर बन गया। कृप, अर्जुन व कर्ण भी उससे अधिक श्रेष्ठ नहीं थे। नारायणास्त्र एक ऐसा अस्त्र था ‍जिसका ज्ञान द्रोण के अलावा माभारत के अन्य किसी योद्धा को नहीं था। यह बहु‍त ही भयंकर अस्त्र था।
 
अश्‍वत्थामा के ब्रह्मतेज, वीरता, धैर्य, तितिक्षा, शस्त्रज्ञान, नीतिज्ञान, बुद्धिमत्ता के विषय में किसी को संदेह नहीं था। दोनों पक्षों के महारथी उसकी शक्ति से परिचित थे। महाभारत काल के सभी प्रमुख व्यक्ति अश्‍वत्थामा के बल, बुद्धि व शील के प्रशंसक थे। भीष्मजी रथियों व अतिरथियों की गणना करते हुए राजा दुर्योधन से अश्‍वत्थामा के बारे में उनकी प्रशंसा करते हैं किंतु वे अश्‍वत्थामा के दुर्गुण भी बताते हैं। उनके जैसा निर्भीक योद्धा कौरव पक्ष में और कोई नहीं था।
 

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