इतना भी दर्द ना दे बेदर्दी कि तेरी चौखट पर ही दम तोर जाऊं .। दर्द से भरी है ये प्रेम कहानी, माशूका के लिए हर जुल्म सह गया था यह आशिक /
दर्द भरी है यह प्रेम दास्तां, मजनूं ने ली थीं आखिरी सांसें यहां की सीमा पर
लैला की दर्द भरी दास्तां, राजस्थान की सीमा पर मजनूं ने ली थीं आखिरी सांसेंAlok Mishra
जयपुर। प्यार, इश्क, प्रेम और मोहब्बत ये ऐसे शब्द हैं जो जुबान पर आते ही मन रोमांचित हो जाता है। लेकिन इनके रास्ते सहज नहीं हैं। हर पग पर कांटे और आग के शोले हैं। या यूं कहें कि ये आग का दरिया और जिसे डूब कर पार करना है। दुनिया में ऐसी कई प्रेम कहानियां हैं, जिन्हें आपने भले ही न देखा हो, लेकिन उनकी दर्द भरी दास्तां जरूर सुनी होगी। ये ऐसे प्रेमी युगल थे, जिन्होंने अपनी मोहब्बत के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया। शायराना अंदाज ब्लाॅग्सपोट डाॅट काम आज आपको एक ऐसी प्रेमी युगल के बारे बताने जा रहा है। जिसकी दास्तान आज भी सुनी सुनाई जाती है। यह प्रेम कहानी आज भी अमर है। इस प्रेमी युगल को भारत का रोमियो जूलियट कहा जाता है। जी हां ये जोड़ा लैला-मजनूं है।
अगली स्लाइड में पढ़े, इस प्रेमी युगल ने अपनी मोहब्बत के लिए क्या-क्या सहे जुल्म
राजस्थान की सीमा पर मजनूं ने ली आखिरी सांस: राजस्थान के गंगानगर जिले में अनूपगढ़ से 11 किमी की दूरी पर लैला और मजनूं का मजार है। कहा जाता है कि एक दूसरे के प्यार में डूबे लैला मजनूं ने प्रेम में विफल होने के बाद अपनी जा दे दी थी। जमाने के विरोध के बावजूद दोनों की मजारें बिल्कुल पास हैं। भारत-पाक सीमा के नजदीक स्थित यह मजार मजहब से परे है। भारत पाक में मतभेद होने पर भी हिन्दू और मुस्लिम दोनों यहां आकर सिर नवाजते हैं। कहने का अभिप्राय है कि प्रेम सरहदें नहीं मानता। वह सीमाओं से सदा सर्वदा मुक्त है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अपने प्रेम को बचाने समाज से भागे इस प्रेमी जोड़े ने राजस्थान के इसी बिजनौर गांव में शरण ली और यहीं अंतिम सांस भी ली। इस स्थल को मुस्लिम लैला मजनूं की मजार कहते हैं तो हिंदू लैला मजनूं की समाधि।
प्यार दर-दर भटकता रहा मजनूं: किसी कल्पना से कम नहीं है लैला मजनूं की प्रेम कहानी। लेकिन यह सच है। सदियों से लैला मजनूं की दास्तान सुनाई जा रही है। यह कहानी उस दौर की है जब प्यार को गुनाह माना जाता था। प्रेम करना किसी सामाजिक बुराई से कम नहीं था। लैला मजनूं का प्रेम लंबे समय तक चला और आखिर इसका अंत काफी दुखदायी हुआ। दोनों जानते थे कि वे कभी एक साथ नहीं रह पाएंगे। एक दूसरे के लिए प्रेम की इस असीम भावना के साथ दोनों सदा के लिए इस दुनिया से दूर चले गए। उनके प्रेम की पराकाष्ठा यह थी कि लोगों के उन दोनों के नाम के बीच में "और" लगाना भी मुनासिब नहीं समझा और दोनों हमेशा "लैला-मजनूं" के रूप में ही पुकारे गए। बाद में प्यार करने वालों के लिए यह बदनसीब प्रेमी युगल एक आदर्श बन गया। प्रेम में गिरफ्तार हर लड़की को लैला कहा जाने लगा और प्यार में दर-दर भटकने वाले आशिक को मजनूं की संज्ञा दी जाने लगी।
आजादी से पूर्व बन गया था यहां लैला मजनूं का मजार:देश की आजादी और भारत-पाक विभाजन से पूर्व यहां लैला मजनूं का मजार बन गया था। विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान दो देश बन गए। लेकिन इस मजार पर माथा टेकने दोनों आते रहे। दुश्मनी अपनी जगह थी और मोहब्बत अपनी जगह। राजस्थान की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं और समय समय पर सीमा पर तनाव की खबरें भी आती हैं। लेकिन दुश्मनी की इसी सीमा पर राजस्थान में एक स्थान ऐसा भी है जहां नफरत के कोई मायने नहीं हैं। जहां सीमाएं कोई अहमियत नहीं रखती है। यह स्थान राजस्थान के गंगानगर जिले की अनूपगढ़़ तहसील के करीब है, जहां लैला मजनूं की मजारें प्रेम का संदेश हवाओं में महकाती हैं। अनूपगढ के बिजनौर में स्थित ये मजारें पाकिस्तान की सीमा से महज 2 किमी अंदर भारत में हैं।
सिंध के रहने वाले थे लैला मजनूं:बिजनौर के स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार लैला मजनूं मूल रूप से सिंध प्रांत के रहने वाले थे। एक दूसरे से उनका प्रेम इस हद तक बढ़ गया कि वे एक साथ जीवन जीने के लिए अपने-अपने घर से भाग निकले और भारत के बहुत सारे इलाकों में छुपते फिरें। आखिर वे दोनोंं राजस्थान आ गए। जहां उन दोनों की मृत्यु हो गई। लैला मजनूं की मौत के बारे में ग्रामीणों में एक राय नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और आखिर उसने निर्ममता से मजनूं की हत्या कर दी।
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